माइकोप्लाज्मा जीवन चक्र का सचित्र वर्णन कीजिए
माइकोप्लाजमा जीवाणुओं एवं विषाणुओं के गुण प्रदर्शित करने वाले माध्यमिक सूक्ष्मजीव हैं । माइकोप्लाजमा प्रोकैरियोटिक जीव है, जिसकी खोज नोकार्ड एवं रॉक्स नामक दो फ्रेंच वैज्ञानिकों ने सन् 1898 में प्लूरोन्यूमोनिया से ग्रस्त पशुओं के प्यूरल द्रव के अध्ययन के समय की थी । जापानी वैज्ञानिक डियो एवं सहयोगियों ने सन् 1967 में पोटैटो विचेस ब्रूम एवं एस्टर येलो में कोशिका भित्ति रहित बहरूपी सरचनाएं देखें mycoplasma like bodies कहा । बोरेल एवं उनके सहयोगियों ने सर्वप्रथम pplo नाम दिया और बाद में उन्होंने इसे माइकोप्लाजमा नाम दिया ।
माइकोप्लाजमा के विशिष्ट लक्षण (Special Characters of Mycoplasma)
- 1. यह सूक्ष्म, एककोशिकीय, अचल, प्रोकैरियोटिक जीव हैं, जिन्हें केवल इलेक्ट्रॉन की सहायता से ही देखा जा सकता है ।
- ये रोगग्रस्त पौधों के फ्लोएम की चलनी नलिकाओं में पाए जाते हैं ।
- ये परजीवी तथा मृतोपजीवी होते हैं ।
- इनमें कोशिका भित्ति अनुपस्थित होता है ।
- इनमें डीएनए एवं आरएनए दोनों में पाए जाते हैं ।
- यह सबसे छोटा प्लाज्मा होता है ।
माइकोप्लाजमा के जीवन -चक्र (Life -cycle of Mycoplasma)
इनमें प्रजनन की विधि अभी तक ठीक से ज्ञात नहीं है । यह अपने जीवन का प्रारंभ एक छोटी एलीमेंट्री बॉडी के रूप में करता है । यह बॉडी भोज्य पदार्थों का अवशोषण करके माध्यमिक कोशिका का निर्माण करती है तथा अंत में वृद्धि करके एक प्रौढ़ कोशिका में परिवर्तित हो जाती है । प्रौढ़ कोशिका पुनः दो प्रकार से जनन करती है -
1. प्रौढ़ कोशिका के विखंडन से,
2. प्रौढ़ कोशिका में अंतर्विष्ट एलीमेंट्री बॉडी के निर्माण से ।
अंतर्विष्ट बॉडी की संख्या 5 से 10 तक हो सकती है । मातृ कोशिका से पृथक होकर एक प्रौढ़ कोशिका को जन्म देती है ।
