मछलियों में प्रवास पर टिप्पणी । Comment on migration in fishes in Hindi

 मछलियों में प्रवास या अभिगमन (migration in fishes) 

प्रवास : "भोजन की तलाश में या प्रजनन के लिए अनुकूल परिस्थियों में प्राणियों का एक स्थान से दूसरे स्थान तक एक निश्चित सीमा के लिए जाना ही प्रवास कहलाता है ।" 

या दूसरे शब्दों में कहें तो "अपनी आवश्यकतानुसार जीवन यापन, प्रजनन, सुरक्षा के लिए दूसरे जगह जाना और एक निश्चित समय बाद वापस आ जाना प्रवास कहलाता है ।" 

कई प्रकार की मछलियाँ नियमित आधार पर, दैनिक से लेकर वार्षिक तक या उससे भी ज्यादा दिनों के लिए लहरों किलोमीटर दूरी तय करती है जिसे प्रवास कहा जाता है । मछलियाँ सामान्य रूप से भोजन की तलास, प्रजनन, स्वास्थ्य, सुरक्षा के लिए प्रवास करती है । लेकिन कई बार इन्हें नुकसान भी सहना पढ़ता है ।

मछलियों में प्रवास पर टिप्पणी  । Comment on migration in fishes in Hindi 

सामान्यतः मछलियां ज्यादा प्रवास नहीं करती हैं । वे अपने लोकल क्षेत्र में रहना पसंद करते हैं । परंतु मछलियों के कुछ विशेष ऐसे प्रजाति भी है जो प्रवास करते है जो स्वच्छ जल से समुद्र की ओर प्रवास करते हैं । ये मौसमी प्रवास भी करती है । उदाहरण के लिए स्फिरिना बैराकुडा तथा जिफियस ग्लैडस बसंत मौसम में उत्तर की ओर तथा पतझड़ में दक्षिण की ओर latitudinal प्रवास करते हैं । कुछ गहरे जल में रहने वाली मछलियां प्रतिदिन उर्ध्वाधर प्रवास करती हैं । अंडे देने के लिए स्वच्छ जल से खारे जल की और प्रवास करते है जिन्हें समुद्राभिगामी प्रवास(catadromous migration) कहते हैं । इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जलवासी ईल । इसके उल्टे गमन अर्थात् खरे जल से स्वच्छ जल की प्रवास करना समुद्रापगामी प्रवास (Anadromous migration) कहलाता है । इसका उदाहरण है हिल्सा, साल्मन । 

1. ईल (Eels)- catadromous migration के दो सबसे अच्छे उदाहरण हैं ।  यूरोप की स्वच्छ जल की नदियों में Anguilla rostrata एवं अमेरिका की Anguilla valgaris. 


पतझड़ मौसम जैसे ही आता है इनका रंग पीले से धातुई चांदी में बदल जाता है । उनकी आहारनाल सिकुड़ जाति है और वे आहार लेना बंद कर देती है । जनन ग्रंथि पूर्ण रूप से विकसित हो जाती है, आखें बड़ी ही जाती हैं । इस प्रकार रुपहली ईल्स या सिल्वर ईल्स समुद्र में प्रवेश करती हैं एवं यूरोप से  पश्चिम की ओर लगभग 4500 किमी. प्रवास करती हैं । ये बरमूडा से दूर sargasso सागर में अपने प्रजनन स्थल पर पहुंचकर प्रौढ़ गहरे जल में अंडे देने के बाद मर जाते हैं ।   

अंडों से छोटे -छोटे पत्ती के समान लार्वा निकलते हैं जिन्हें leptocephalia कहा जाता है । इनमें दांत एकदम नुकीले सुई के समान होते हैं । अब ये लार्वा 8 सेमी. लंबे, बेलनाकार ईल में वृद्धि करते हैं जो अपने पैतृक घर जाने को तैयार हो जाता है । स्थल के निकट पहुंचने पर नर तक के समीप खारे जल में रह जाते हैं  जबकि मादा स्वच्छ जल के स्रोत व नदियों में प्रवेश करती हैं । यह लार्वा भोजन ग्रहण कर पीले रंग की ईल में वृद्धि करती हैं । यह एक रहस्य ही बन है की कैसे लार्वा अपने पैतृक घर का मार्ग खोज लेता है और वयस्क में बदल कर अपना जीवन निर्वाह करता है ।  

2. साल्मन - अटलांटिक सागर की साल्मन जाति साल्मो सालर तथा प्रशांत महासागर की साल्मन oncorhynus की 5 जातियां Anadromous migration करती हैं । ठंड के मौसम में नर व मादा अपना आहार छोड़कर समुद्र में पहाड़ों की स्वच्छ जलीय धाराओं में प्रवेश करके उसी निश्चित स्थान पर जाती हैं जहां कुछ वर्ष मूलतः पैदा हुई थीं । यह आहार लें बंद कर देती हैं और रजत से रक्ताभ भूरे रंग में बदल जाती हैं और तली की बालू में उथले गड्डे खोदती हैं । अंडे देने के बाद वयस्क की मौत हो जाति है । कुछ जीवित भी बच जाती हैं । जो जीवित बचती हैं वो पुनः सागर में लौट आते हैं और जीवनकाल में दो या तीन बार अंडे देती हैं ।  

अंडे से निकलने वाला लार्वा समुद्र की ओर जाने से पहले कुछ समय पर्वतीय स्वच्छ जलधाओं में ही वृद्धि करता है । समुद्र या महासागर में प्रचुर मात्रा में खाना होने के कारण लार्वा वहां तेजी से वृद्धि करता है । घ्राण संवेदना इसको मूल जन्म स्थल की ओर ले जाने में मदद करता है । 

मछलियों के प्रवास का महत्व (Significance of Migration in Fishes)

मछलियां जब प्रवास करती हैं तो उन्हें कुछ लाभ भी मिलता है तो कुछ हानि भी मिलती है ।  पर ज्यादातर लाभ ही मिलता हैं । जैसे - मौसमी वातावरण के प्रकोप से बचाव, अंडों की अनुकूलन सुरक्षा, भोजन, स्वच्छ वातावरण, प्रजनन के वासस्थान आदि । 

नोट: मछलियां हमारी प्राकृतिक सौंदर्य के साथ साथ हमारी प्रथम उपभोक्ता भी है जिसका भक्षण मनुष्य तथा समुद्री जीव करते हैं ।

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